शैक्षणिक संस्थानों में बढ़ती तानाशाही, आख़िर किसके बल पर?

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छुट्टी के दिन भी चल रहा प्रशासनिक काम, छात्रों को जाने से रोका गया, कोर्ट के आदेश की अवमानना! छात्रों ने उठाए सवाल

मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति भीमराय मैत्री की नियुक्ति को अवैध करार दिया उसके बाद से विश्वविद्यालय में हलचल शुरू हो गई। कुलसचिव धरवेश कठेरिया ने नए कुलपति की नियुक्ति के लिए एक समिति का गठन किया। इससे पहले के कुलपति प्रो लेल्ला कारुण्यकरा ने कोर्ट के आदेश के बाद फिर से आकर कुलपति की कुर्सी संभालनी चाही तो उन्हें धरवेश कठेरिया ने यह कहते हुए कुर्सी पर बैठने से मना किया कि वो कोर्ट का लिखित आदेश दिखाए। कुलपति भीमराय मैत्री की नियुक्ति को लेकर प्रोफेसर कारुण्यकारा ने ही कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और वो इस केस को जीत भी चुके है। छात्रों का कहना है कि केस जीतने के बाद नियमानुसार कारुण्यकरा को ही कुर्सी पर बैठना चाहिए। मामला बढ़ने के बाद कोर्ट का एक आदेश जो कि 01 अप्रैल को जारी किया गया, छात्र उसको लेकर लगातार कुलसचिव धरवेश कठेरिया का विरोध कर रहे हैं।

जानिए अब तक क्या हुआ…

27 मार्च को मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा में कुलपति अतिरिक्त कार्यभार संभाल रहे आई आई एम के निदेशक भीमराय मैत्री की नियुक्ति को अवैध करार देने के साथ ही पूर्व कुलपति लेल्या कारुण्यकरा को पुनः पद पर बहाल करने का आदेश दे दिया। मगर विश्वविद्यालय में अवकाश के चलते प्रोफेसर कारुण्यकरा अभी पद पर बैठे नही यहां कुलसचिव धरवेश कठेरिया ने नए कुलपति की नियुक्ति हेतु नए पैनल बनाने की तैयारी में जुट गए। विश्वविद्यालय में रविवार का अवकाश था और बिना किसी कुलपति के यह कमेटी बनाई जा रही थी।

परिसर में जगह जगह बैरिकेट लगा दिए गए थे। छात्रों ने जब परिसर में जाना चाहा तो उनको यह कहकर रोक दिया जा रहा कि महत्वपूर्ण प्राशासनिक कार्य चल रहा है। कुछ छात्रों का कहना है कि ऐसे कार्य अवकाश के दिन ही क्यों किए जाते हैं। प्रशासनिक भवन के आस पास भारी संख्या में गार्ड की तैनाती थी,हिंदी विश्वविद्यालय में ऐसी घटनाएं आम हो गई हैं। आपको बता दें कि जिन छात्रों को महीने पहले निलंबित किया गया था उनको भी छुट्टी के दिन ही नोटिस दी गई थी।

छात्र वेद कुमार का कहना है कि जब वो विश्वविद्यालय परिसर के रास्ते बाजार जाना चाहे तो उनको रोक कर दूसरी ओर से जाने को कहा गया। हवाला यह दिया गया कि प्रशासनिक भवन में कुछ जरूरी काम चल रहा है।

शोध छात्रा राजेश सारथी ने कहा कि बिना कुलपति के पुनः पदभार ग्रहण किए उनकी अनुपस्थिति में कैसी मीटिंग चल रही। जबकि कोर्ट ने भीमराय मैत्री की नियुक्ति को अवैध करार दे दिया। ऐसे में लेल्ला कारुण्यकरा जब तक पद ग्रहण नही कर लेते तब तक मीटिंग नही हो सकती और न ही किसी कमेटी का गठन किया जा सकता है। इसमें प्रशासन की पूरी मनमानी दिखती है। वो और आर एस एस के लोग कदापि नहीं चाहते कि कोई दलित कुलपति बने।

निलंबन, निष्कासन से परेशान छात्र,बताया तानाशाही

विश्वविद्यालयों में छात्रों का निलंबन, निष्कासन और उन पर कार्यवाइयों की घटनाएं आम होती जा रही हैं। विगत एक दशक से ऐसी घटनाओं की तादाद बढ़ी है। ज्यादातर मामलों में प्रशासन को अपने निर्णय वापस लेने पड़े हैं। ऐसे में अब सवाल ये उठता है कि क्या अब हर बात के लिए छात्रों को न्यायालय के दरवाजे जाना होगा? इस प्रक्रिया में छात्रों का जो समय और धन खर्च होता है उसकी भरपाई ये संस्थान कैसे करेंगे? या फिर ये कि आने वाले समय में क्या संस्थानों की स्वायत्तता एकदम खत्म हो जाएगी और उनपर सत्तासीन लोगों की दखलंदाजी ही होगी? हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के मामले के साथ हमने कुछ अन्य संस्थानों में भी झांकने की कोशिश की है।

पिछले कुछ महीने से महाराष्ट्र के वर्धा में स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के मामले को देखने से यह बात साफ हो जाती है कि सरकार और उसके तंत्र की दखलंदाजी विश्वविद्यालयों में तेजी से बढ़ी है। चाहे छात्रों के बेवजह निलंबन और निष्कासन की बात हो या फिर गैर दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों पर रोक लगाने की। इतना ही नहीं संस्थानों में एक विशेष विचारधारा के लोगों को प्रश्रय देने तथा धार्मिक गतिविधियों में खुलकर हिस्सा लेने जैसे मामले भी चिंताजनक हैं।

विगत 26 जनवरी को कुछ छात्रों को इसलिए निष्काषित कर दिया जाता है क्योंकि उन्होंने कुलपति भीमराय मैत्री को झंडारोहण के समय काला झंडा दिखाया था। निष्कासित छात्रों में राजेश सारथी, रजनीश आंबेडकर, विवेक मिश्रा और निरंजन का कहना था कि भीमराय मैत्री की नियुक्ति असंविधानिक है और उन्हें झंडारोहण का कोई अधिकार नहीं। इस मामले में कुलानुशासक धरवेश कठेरिया ने उनका निष्काषन कर दिया। छात्र विवेक मिश्रा का निष्कासन तो सिर्फ इस वजह से कर दिया गया कि उसने सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखी थी। प्रशासन का कहना था कि वो पोस्ट आपत्तिजनक थी।

भीमराय मैत्री के कुलपति बनने को लेकर कई सवाल खड़े हो चुके थे। पिछले साल रजनीश शुक्ल के इस्तीफे के बाद विश्वविद्यालय के सीनियर प्रोफेसर लैला कारुण्यकारा ने नियमतः कुलपति का कार्यभार संभाल लिया था मगर कुछ ही दिनों बाद मंत्रलाय के एक आदेश से आई आई एम नागपुर के निदेशक भीमराय मैत्री को कुलपति का अतिरिक्त पदभार दे दिया गया जिसको प्रोफेसर कारुण्यकरा ने असंवैधानिक बताते हुए मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में चुनौती दी।

बीते 27 मार्च को कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए भीमराय मैत्री की नियुक्ति को रद्द कर प्रो कारुण्यकारा को पुनः पद पर आसीन होने का आदेश दिया।

देश के विश्वविद्यालयों में चल रही ऐसी अनियमितताओं का जिम्मेदार कौन है? यह बड़ा सवाल है। आखिर विश्वविद्यालयों के ऐसे बड़े पदों पर चल रही नियुक्तियों के पीछे वर्तमान सत्ता की क्या मंशा है।

आपको बता दें कि राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा जैसे कार्यक्रमों को विश्वविद्यालय परिसर में धूम धाम से मनाया गया मगर दूसरी ओर वाम संगठनों के कार्यक्रमों पर लगातार लगाम लगाया जाता है। छात्रों और शिक्षकों की झड़प में एक शिक्षक ने वाम दल संगठनों की डफली को तोड़ दिया और आदेश दिया कि परिसर में डफली बजाना सख्त मना है।

निलंबित छात्रों में छात्र जतिन चौधरी का निष्कासन तब वापस हुआ जब कोर्ट ने विश्वविद्यालय प्रशासन को फटकार लगाई। अब बात वही है कि क्या अब हर बात के लिए कोर्ट को सिखाना होगा कि विश्वविद्यालय कैसे चलाए जाएं। खैर ऐसी दमनकारी नीतियों और मनमानी पर लगाम लगाने के लिए कम से कम अभी न्यायपालिका पर थोड़ा बहुत भरोसा तो कायम है।

ऐसा हाल सिर्फ हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा का ही नही है बल्कि ऐसे मामले रोज किसी न किसी विश्वविद्यालय से आते रहते हैं। इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में भी शासन प्रशासन की तानाशाही के कई मामले सामने आए हैं। जहां कभी प्रॉक्टर किसी छात्र को लाठी से पीट रहे हैं तो कोई शिक्षक छात्रावास में जाकर छात्र को धमकी दे रहा है और उसके साथ मारपीट कर रहा है।

देश में जो माहौल है उसका सीधा असर इन संस्थानों पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है। छात्र न तो संवाद कर सकते है और न ही परिचर्चा। उसके लिए प्रशासन की इजाजत जरूरी है और प्रशासन भी उन्ही कार्यक्रमों की इजाजत देता है जिनके होने से उनपर कोई ऊपरी दवाब न पड़े।

खुलेआम संस्थानों के हो रहे भगवाकरण और सरकार की गुलामी में जीहुजूरी करते लोग संस्थानों को अंदर से खोखला कर रहे हैं। मूल मुद्दों से छात्रों को भटकाया जा रहा है। शिक्षा पर होने के बजाय ज्यादा कार्यक्रम धार्मिक विषयों या फिर सरकारी नीतियों पर हो रहे है ।

विकसित भारत 2047 को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्टेच्यू पूरे परिसर में लगाए गए। आंबेडकर की प्रतिमा के पास राम दरबार की झांकी लगाई गई। वर्धा विश्वविद्यालय के परिसर में स्थित नजीर हाट का नाम बदलकर सावरकर संकुल रखा जा रहा है। धार्मिक कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जा रहा है। कभी सुंदरकांड तो कभी दीपोत्सव जैसे कार्यक्रमों में लाखों खर्च करने वाले ये संस्थान छात्रों की मांगों पर ध्यान देने और उनसे बातचीत के बजाय सीधे उनके निष्कासन और निलंबन पर उतारू हो रहे है। जरूर इस तानाशाही में उनकी पीठ कोई ऊपर बैठा व्यक्ति थपथपा रहा है।

विवेक रंजन सिंह

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