हुंकारों ने भरी ऐसी हुंकार कि पंकज त्रिपाठी ने नाटक को देखने की करी अपील,सरहद पार भी मंचन की उम्मीद!

मंझे हुए कलाकारों का अभिनय और समसामायिकता से सराबोर नाटक

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हुंकारों ने भरी ऐसी हुंकार कि पंकज त्रिपाठी ने नाटक को देखने की करी अपील,सरहद पार भी मंचन की उम्मीद!

20th September 2023, Mumbai: सिने जगत में फिल्मों को सिनेमाघर के पर्दों पर देखने का प्रचलन भले ही तेजी से बढ़ रहा हो मगर नाटकों के मंचन का क्रेज थोड़ा भी कम नहीं हुआ है। आज भी एक बड़ा वर्ग नाटकों के मंचन देखने का शौकीन है। नाटक को मंच पर देखना मतलब अभिनय की बारीकियों को बेहतर तरीके से देखना और समझना है। इससे अभिनय की कला में निखार आता है। आज के समय में अभिनय की दुनिया में अपना लोहा मनाने वाले कई स्थापित कलाकार थिएटर के रास्ते ही हिंदी फिल्मों में आए और अपने अभिनय से एक बड़ा दर्शक वर्ग तैयार किया। मशहूर पृथ्वी थियेटर में ऐसा ही एक नाटक कल होने जा रहा है जिसको देखने की अपील अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने एक वीडियो शेयर करते हुए किया है।

क्या है हुंकारों नाटक,जो चर्चा में है

हुंकारों नाटक में श्रोता की ओर से एक कहानीकार को सुनने की प्रतिक्रिया है जिसमे वह कहानी को सुन रहा है और कहानी के साथ यात्रा कर रहा है। इस नाटक में तीन कहानियों का ताना बाना पेश किया गया है। कथा का मर्म है कि आशा कैसे इंसान में कितनी ताकत पैदा कर सकती है और आशा के बिना जीवन को कायम रखना कैसे संभव है?

विजयदान देथा की कहानी ‘ आशा अमर धन ‘

इसका पहला भाग आशा और उम्मीद की कहानी है। आशा एक अमर धन है जिसके सहारे मारवाड़ का एक किसान परिवार अपने जीवन को किस हिसाब से जीता यह इस नाटक के प्रथम भाग में दिखाया गया है।

चिराग खंडेलवाल का गीतात्मक वर्णन ‘ अमर ‘

कोविड के दौरान हजारों लोगों का पलायन करना और इस उम्मीद में चलते रहना कि देर सबेर ही सही वो अपने घर पहुंचेंगे। रास्ते में एक इंसान से मुलाकात और उस मुलाकात के साथ उसके साथ रिश्ते की यात्रा का सार है ‘ वो यहां चलता है ‘

अरविंद चारण की कहानी ‘ माई ‘

मुंबई में एक चाल में रहने वाले दो भाईयों की कहानी जिसने पास आशाएं हैं कुछ सपने और सांसारिक जीवन की कुछ जिम्मेदारियां। लॉकडाउन में वो अपनी मां को छोड़कर गांव चले जाते हैं और बाद में अपराधबोध करते हैं। आशा और अपराधबोध के बीच द्वंद पैदा करती यह कहानी नाटक की अंतिम कहानी है।

मोहित टाकलकर का सधा निर्देशन

देश के कोने कोने में प्रस्तुत हो चुके इस नाटक को निर्देशित कर रहे हैं मोहित टाकलकर। उन्होंने इस नाटक में साइक्लोफिजिकल अभिनय पर ध्यान देते हुए अभिनेताओं के मन,आंगिक ऐक्यता के साथ वाक कौशल पर ध्यान दिया है। 2003 में आसक्त नाम की संस्था की स्थापना करने वाले मोहित लगभग पच्चीस साल से थिएटर में सक्रिय हैं। वो यू.के. के एक्सेटर विश्वविद्यालय से थिएटर प्रैक्टिस में मास्टर हैं और कई राष्ट्रीय पुरस्कारों जैसे भाभा फेलोशिप, बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार आदि से सम्मानित हैं।

कलाकारों का ऐसा अभिनय जो आपको हिलने तक नही देता

मुख्य बात है कि मंच पर कलाकारों का अभिनय,जो इस नाटक को जिंदा बनाते हैं। देश के बड़े संस्थानों से पढ़े और अभिनय की दुनिया में लगातार छाप छोड़ रहे कलाकार आपको इस नाटक में देखने और सुनने को मिलेंगे। जिसमे अजीत सिंह पालावत,इप्शिता चक्रवर्ती,पुनीत मिश्रा,भास्कर शर्मा,भारती पेरवानी और महेश सैनी हैं।

21 सितंबर यानि कल होगा पृथ्वी थियेटर में मंचन,पंकज त्रिपाठी ने की नाटक देखने की अपील

जयपुर,दिल्ली,इलाहाबाद के साथ साथ देश और विदेश में ख्याति पा चुके इस नाटक का मंचन कल मुंबई के पृथ्वी थियेटर में होना है। जिसको लेकर अभिनेता पंकज त्रिपाठी की भी एक प्रतिक्रिया सामने आई है जिसमे वो एक वीडियो में इस नाटक की तारीफ करते हुए कह रहे हैं कि दिल्ली में उन्होंने यह नाटक देखा था जो उन्हें बेहद प्रभावित किया। इतना ही नहीं उन्होंने कल प्रस्तुत होने वाले इस नाटक को देखने के लिए दर्शकों से अपील भी की है।

रिपोर्ट – विवेक रंजन सिंह

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