9th October 2023, Mumbai: जाति का शाब्दिक अर्थ है- जानना यानी जिस कर्मों से उसकी जान पहचान है, उसे उस जाति का माना गया। ब्रह्मा जी ने भी कर्मों के आधार पर ही चार जाति का पहचान बनाया था। परंतु आज राजनीतिक दलों ने उनका प्रारूप बादल, जन्म के आधार पर हजारों की संख्या में वॉटकर कमजोर कर दिया है। यह सब खेल सिर्फ वॉट बैंक के लिए ही हो रहा है।
जाति तो सिर्फ दो ही होना चाहिए। अमीरी-गरीबी एवं स्त्री-पुरुष। ऐसी जाति सभी धर्मों एवं वर्गों में पाया जाता है। लेकिन कोई राजनीतिक दल ऐसा चाहेंगे नहीं। उन्हें तो वॉट बैंक के लिए जाति गणना सभी को इंद्रजाल में फंसाकर अपना स्वार्थ पूरा करना है। देश में राजनीतिक दलों का तब तक चलेगा ऐसा खेल, जब तक आरक्षण का संविधान में रहेगा बोल। संविधान में आरक्षण का तब तक रहेगा बोल, जब तक वोट बैंक का चलेगा खेल। वोट बैंक जिस दिन जाएगा टूट, फिर जाति से नेता जाएगा रूठ।
पहले अंग्रेजों ने जाति धर्म में वॉटकर राज्य किया था। अब राजनीतिक दल जाति-धर्म के नाम पर शासन कर रहा है। कभी मनमोहन सिंह जी कहते थे देश की संपदा पर पहला अधिकार मुसलमान का है। परंतु पद की जब बात आती है तो राहुल गांधी से योग्य प्रधानमंत्री उम्मीदवार दूसरा कोई नहीं मिलता है। जाति के नाम पर वोट तो हासिल कर लेता है। परंतु जब सत्ता लाभ की बारी आती है तो रावड़ी तेजस्वी तेजप्रताप से योग्य कोई यादव नहीं मिलता है। जिस दिन इस सच्चाई को समझ जाएगा। उसे खुद जनता जाति का इंद्रजाल जोड़ देगा। किसी संतों ने भी कहा है– जाति-पात पूछे ना कोई, हरि के भजे सो हरि का होई, यानी जो सरकार बिना जाति धर्म देखे अमीरी-गरीबी स्त्री पुरुष में वोट कर राजनीतिक एवं आर्थिक लाभ देता हो उन्ही का हम वोटर बनना चाहिए।
नीतीश जी जाति गणना करा कर खुद अपनी पीठ ठोक रहा है। परंतु यह जाति गणना इंद्रजाल में खुद भी फसता जा रहा है। वह अब समझ नहीं रहा है कि ऐसा जाति गणना गरीबों का हित कर पाएगा या राजनेताओं का वोट बैंक का हित। जब जनता सच्चाई समझेगी तब तक नीतीश जी का राजनीतिक अंत होने के कगार पर रहेगा। तब तक के लिए मेरे तरफ से नीतीश जी को धन्य….वाद।