सुप्रीम कोर्ट ने वोटर वेरीफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल(वीवीपीएटी )और ईवीएम पर याचिका की सुनवाई की यह सुनवाई मंगलवार को न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और दीपंकर दत्ता की पीठ ने किया और आगे की सुनवाई के लिए 18 अप्रैल तक टाल दिया गया है। याचिका में वीवीपीएटी से निकलने वाली सभी पर्चियां का मिलान ईवीएम में पड़े वोटो के साथ करने की मांग की गई है। यह याचिका अरुण कुमार अग्रवाल के द्वारा दायर की गई है जो कि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सदस्य और सोशल एक्टिविस्ट है। एडीआर की तरफ से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट में यह दलील पेश की की अधिकांश मतदाता ईवीएम पर भरोसा नहीं करते हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपको यह डाटा कैसे और कहां मिला कि लोग इस पर विश्वास नहीं करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा ‘हम अपनी जिंदगी के छठे दशक में है’
वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि यूरोपीय देश भी अब ईवीएम की जगह बैलट पेपर पर वापस लौट आए हैं इस पर जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि हम अपनी जिंदगी के छठे दशक में है और जानते हैं कि जब बैलेट पेपर से मतदान होता था तो क्या समस्याएं उत्पन्न होती थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा जर्मनी का उदाहरण ना दें
प्रशांत भूषण ने जर्मनी का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां पर बैलेट पेपर पर मतदान किया जाता है इस पर जस्टिस दीपंकर दत्ता ने कहा कि जर्मनी की जनसंख्या हमारे पश्चिम बंगाल की जनसंख्या से भी काम है. वेस्ट का कोई भी उदाहरण हमारे भारत देश के लिए उपयुक्त नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा मानवीय हस्तक्षेप से समस्याएं उत्पन्न होती है
एक वकील ने वोट देने के लिए बारकोड का सुझाव दिया जिस पर जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा बारकोड से वोटो की गिनती में मदद नहीं मिलेगी जब तक की हर उम्मीदवार या पार्टी को बारकोड ना दिया जाए. मानवीय हस्तक्षेप से समस्याएं उत्पन्न होती है।
ईवीएम से छेड़छाड़ पर सजा के लिए विशेष प्रावधान
जस्टिस संजीव खन्ना ने चुनाव आयोग से पूछा कि ईवीएम के साथ अगर कोई छेड़छाड़ की गई थी इसके लिए क्या सजा निर्धारित की गई है? चुनाव आयोग ने कहा कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ होने पर सजा का विशेष प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से ईवीएम के इस्तेमाल का पूरी प्रक्रिया का विवरण मांगा है।