पिता के लिए सुनील छेत्री बने फुटबॉलर

Attention India
Attention India
4 Min Read

सुनील छेत्री को बचपन से ही पढ़ाई में बहुत मन लगता था. उन्होंने कभी फुटबॉलर बनने का नहीं सोचा था। उनके लिए ये खेल केवल किसी अच्छे कॉलेज में एडमिशन लेने का जरिया भर था।

सुनील छेत्री ने करीब दो दशक तक खेलने के बाद इंटरनेशनल फुटबॉल को अलविदा कहने का फैसला किया है। अगले महीने कुवैत के खिलाफ होने वर्ल्ड कप क्वालिफाइंग मैच के बाद वो रिटायर हो जाएंगे। भारत के लिए 150 मैचों में सबसे ज्यादा 94 गोल कर चुके छेत्री भारतीय फुटबॉल के गढ़ कोलकाता में अपने प्रिय खेल से विदाई ले लेंगे। लेकिन क्या आपको पता है कि भारतीय फुटबॉल के इतिहास में सबसे बेहतरीन खिलाड़ियों में से एक माने जाने वाले छेत्री कभी फुटबॉलर नहीं बनना चाहते थे। लेकिन पिता के एक अधूरे सपने ने उन्हें इस खेल में कामयाबी की इस बुलंदी तक पहुंचा दिया।

पिता के लिए बने फुटबॉलर

सुनील छेत्री को बचपन से ही पढ़ाई में बहुत मन लगता था. उन्होंने कभी फुटबॉलर बनने का नहीं सोचा था। उनके लिए ये खेल केवल किसी अच्छे कॉलेज में एडमिशन लेने का जरिया भर था। लेकिन फुटबॉल खेलने का गुण तो उन्हें विरासत में ही मिल गया था, जिससे वो दूर नहीं रह सकते थे। उनकी मां सुशीला नेपाल नेशनल टीम के लिए फुटबॉल खेल चुकी थीं। वहीं उनके पिता खारगा छेत्री सेना में थे और वो भी फुटबॉलर थे।

लेकिन वो कभी भारत के लिए फुटबॉल नहीं खेल पाए और चाहते थे कि उनका बेटा इस मुकाम को हासिल करे। अपने पिता के इसी अधूरे सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने प्रोफेशनल फुटबॉल खेलना शुरू किया। दिल्ली में सुनील ने फुटबॉल का ककहरा सीखना शुरू किया और 2001-02 में सिटी क्लब से जुड़ गए। इसके बाद 2002 में वो मोहन बागान जैसे दिग्गज क्लब के लिए खेलने लगे।

कम उम्र में पाई उपलब्धियां

सुनील छेत्री 2005 तक मोहन बागान के साथ रहे और 18 मैचों में आठ गोल दागे। लगातार शानदार प्रदर्शन के बाद उन्हें भारत की अंडर-20 टीम और नेशनल टीम में मौका मिल गया। 2005 में ही उन्हें अपने पिता के अधूरे ख्वाब को पूरा करने का मौका मिला। उन्होंने पाकिस्तान के क्वेटा शहर में पाकिस्तान के खिलाफ इंटरनेशनल फुटबॉल में डेब्यू किया। इस मैच में एक गोल दागकर सबको आने वाले फुटबॉल स्टार की झलक दे दी थी।

1984 में जन्में सुनील छेत्री को अपने पिता के सपने को साकार में 20 साल लगे। लेकिन उन्होंने इसे न सिर्फ पूरा किया बल्कि इस खेल में भारत के आइकन भी बने। सुनील छेत्री ने 2005 में जब डेब्यू किया था, तब बाईचुंग भूटिया जैसे दिग्गज खिलाड़ी मौजूद थे। लेकिन उन्होंने 2011 में टीम का साथ छोड़ रिटायरमेंट की घोषणा कर दी। इसके बाद तत्कालीन कोच बॉब हॉटन ने एशिया कप में सुनील छेत्री को टीम का कप्तान बनाया। लेकिन 13 सालों तक नीली जर्सी और नारंगी आर्म बैंड में टीम का भार संभालने के बाद छेत्री अब इसका हिस्सा नहीं रहेंगे।

Share This Article