भारतीय लोकतंत्र में नेता तंत्र का क्या काम है। जब जनता ने अपने मत से चुनकर उन्हें वेतन के साथ सरकार चलाने के काम पर रखा है। फिर वहां लोकतंत्र का नौकर होते मनमानी क्यों करने लगता है। लोकतंत्र ने उन्हें रखने को दिया है बंदूक, पर तो वह बन जाता है हवलदार लोकतंत्र में जिसे चुनकर भेजता है वह खुद मालिक बन नेता तंत्र के राज्यसभा, विधान परिषद के सदस्य को चुनकर मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री एवं अन्य मंत्री तक बना देता है। क्या यह लोकतंत्र का अपमान नहीं है? इससे तो स्पष्ट है चोर चोर मौसेरे भाई बनकर लोकतंत्र पर राज करना चाहते है। सभी नेताओं ने मिलकर लोकतंत्र का मजाक बना दिया है। आज समय की मांग है कि लोकतंत्र में राज्यसभा विधान परिषद विपक्ष सभी अनुपयोगी हो गये है। यह सिर्फ सत्ता सुख एवं वेतन मध की खर्च का बोझ बन गया है। इस तंत्र से एक भी काम अच्छा नहीं हो रहा है। संसद में हंगामा, बहिष्कार, हाथा – पाई मुद्दा विहीन बयान से चर्चित बन गया है। लेकिन जब नेताओं की अपने हित की बात आती है चाहे वह वेतन बढ़ाना अपनी सुख सुविधा अपना अधिकार बढ़ाना कानून में छुट की बातें आती है तो कोई शोर शराबा नहीं कोई विरोध नहीं चुपके से बिल पास हो जाता है। लोकतंत्र का इससे बड़ा धोखा और क्या हो सकता है। लोकतंत्र में जब एक मत ज्यादा होने पर उसे विजय घोषित मान लिया जाता है फिर एक सीट ज्यादा होने पर उन्हें पूर्ण बहुमत वाली सरकार गठन का अधिकार क्यों नहीं रहता, क्यों सांसद या विधानसभा संख्या की आधे से ज्यादा अधिक संख्या की जरूरत समझ जाता है। क्यों गठबंधन की सरकार बना उसे कमजोर लोकतंत्र बनाया जाता है। ऐसा तो नहीं की सारे नेताओं ने मिलकर लोकतंत्र को ठगने एवं लूटने का षड्यंत्र बनाएं रखा है।यदि ऐसा नहीं है तो कानून में संशोधन करके लोकतंत्र को मजबूत बनाने एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की परंपरा खत्म करके सिर्फ लोकतंत्र से चुने सरकार को जिम्मेदार माना जाए। जब एक पक्षीय सरकार बनेगा तो देश से गोवर छत्ता की तरह उगे राजनीतिक दले स्वत: खत्म हो जाएगी। फिर जनता का मत भ्रमित न होकर अच्छा बुरा पर केंद्रित होकर स्वच्छ चुनाव कर पाएगा। हमारे लोकतंत्र में जितने भी अनुपयोगी तंत्र हैं उसे कानून के माध्यम से खत्म कर दिया जाए। जिससे आरोप प्रत्यारोप की राजनीति भी खत्म हो जाएगी। साथ ही जनता के रुपया का भी बचत हो जाएगा। तब माना जाएगा लोकतंत्र का सम्मान एवं लोकतंत्र की अपनी सरकार जिसका जिम्मेदार कोई और नहीं खुद लोकतंत्र ही माना जाएगा परंतु आज की सरकार में पक्ष -विपक्ष लोकतंत्र सभी जिम्मेदारी से भागते हैं। इसी जिम्मेदार विहीन तंत्र पर कहा गया है जिस माला में राम नाम नहीं वह माला किस काम की। यानी लोकतंत्र में जो तंत्र जिम्मेदार विहीन हो जाए वह किसी काम की नहीं है भारतीय लोकतंत्र के अंगने में वैसे तंत्र का क्या काम है।