भारतीय राजनीति में कई प्रभावशाली नेताओं का उदय हुआ है, जिनका देश के विकास और विकास पर गहरा प्रभाव पड़ा है। ऐसी ही एक प्रतिष्ठित शख्सियत लाल कृष्ण आडवाणी हैं, जिन्हें लाल कृष्ण आडवाणी के नाम से जाना जाता है। कई दशकों के करियर के साथ, आडवाणी ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनकी अपार सेवा के सम्मान में, भारत सरकार ने घोषणा की है कि लालकृष्ण आडवाणी को प्रतिष्ठित भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।
प्रारंभिक जीवन और राजनीति में प्रवेश एलके आडवाणी का जन्म 8 नवंबर, 1927 को कराची में हुआ था, जो उस समय ब्रिटिश भारत का हिस्सा था और अब पाकिस्तान में है। एक साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले आडवाणी ने 1947 में भारत के विभाजन से पहले पाकिस्तान में अपनी शिक्षा पूरी की। विभाजन के दौरान उनका परिवार भारत आ गया और आडवाणी मुंबई में बस गए।
आडवाणी की राजनीतिक यात्रा 1950 के दशक की शुरुआत में शुरू हुई जब वे एक हिंदू राष्ट्रवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हुए। श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय जैसे प्रमुख नेताओं के मार्गदर्शन में, आडवाणी ने अपने नेतृत्व कौशल और राष्ट्रवादी उद्देश्य के प्रति अटूट प्रतिबद्धता का प्रदर्शन करते हुए संगठन के रैंकों के माध्यम से तेजी से आगे बढ़े।
भारतीय जनसंघ और भाजपा में भूमिका
1977 में आडवाणी ने भारतीय जनसंघ के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो बाद में भाजपा में विकसित हुआ। पार्टी के संस्थापक सदस्य के रूप में, उन्होंने इसके विकास और विचारधारा में बहुत योगदान दिया। आडवाणी के वक्तृत्व कौशल और करिश्माई व्यक्तित्व ने उन्हें भाजपा का एक प्रमुख चेहरा बना दिया, जिससे पार्टी को जनता के बीच लोकप्रियता हासिल करने में मदद मिली।
आडवाणी की नेतृत्व क्षमता 1973 से 1977 तक भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष के रूप में और बाद में 1986 से 1991 तक भाजपा के अध्यक्ष के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान स्पष्ट थी। उनके मार्गदर्शन में, पार्टी ने महत्वपूर्ण चुनावी सफलता देखी, विशेष रूप से 1990 के दशक के दौरान, जब भाजपा भारत में एक दुर्जेय राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी।
राम जन्मभूमि आंदोलन की वकालत
आडवाणी के राजनीतिक जीवन के निर्णायक क्षणों में से एक राम जन्मभूमि आंदोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी थी। आंदोलन का उद्देश्य अयोध्या में विवादित स्थल, जिसे भगवान राम का जन्मस्थान माना जाता है, को पुनः प्राप्त करना और उसके स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करना था। आडवाणी ने कई अन्य नेताओं के साथ 1990 में इस उद्देश्य के लिए बड़े पैमाने पर सार्वजनिक समर्थन जुटाते हुए ऐतिहासिक रथ यात्रा शुरू की।
राम जन्मभूमि आंदोलन ने व्यापक बहस और विवादों को जन्म दिया, लेकिन आडवाणी राम मंदिर के निर्माण के लिए अपनी प्रतिबद्धता पर अडिग रहे। आंदोलन की परिणति 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस में हुई, जिसके कारण देश भर में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया। आडवाणी को आंदोलन में अपनी भूमिका के लिए आलोचना और कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपने रुख का बचाव करना जारी रखा।
एक सांसद के रूप में आडवाणी का योगदान आडवाणी के राजनीतिक जीवन में उन्होंने कई कार्यकालों के लिए संसद सदस्य (सांसद) के रूप में भी काम किया। वे पहली बार 1970 में नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा के लिए चुने गए थे। आडवाणी ने अपने पूरे कार्यकाल के दौरान भाजपा की विचारधारा और नीतियों की वकालत करते हुए संसदीय बहसों और चर्चाओं में सक्रिय रूप से भाग लिया।
आडवाणी का संसदीय योगदान लोकसभा तक सीमित नहीं था। उन्होंने 1989 से 1991 तक और फिर 1998 से 2014 तक संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा के सदस्य के रूप में भी कार्य किया। दोनों सदनों में उनके भाषण जनता के साथ प्रतिध्वनित हुए और राष्ट्रीय मुद्दों की उनकी गहरी समझ को प्रदर्शित किया।
उप-प्रधानमंत्री के रूप में आडवाणी का स्टिंट
1998 में, जब भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने केंद्र में सरकार बनाई, तो लालकृष्ण आडवाणी को भारत का उप प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। यह महत्वपूर्ण पद उनके कद और पार्टी और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा उन पर व्यक्त किए गए विश्वास को दर्शाता है।
उप-प्रधानमंत्री के रूप में आडवाणी ने सरकार की निर्णय लेने की प्रक्रिया और नीति निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने विभिन्न मंचों पर भारत के हितों का प्रतिनिधित्व करते हुए देश और विदेश दोनों में राजनयिक कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से भाग लिया।
राष्ट्रीय सुरक्षा और गृह मामलों में आडवाणी का योगदान
अपने राजनीतिक प्रयासों के अलावा, लालकृष्ण आडवाणी को राष्ट्रीय सुरक्षा और गृह मामलों से संबंधित महत्वपूर्ण विभाग भी सौंपे गए थे। उन्होंने 1998 से 2004 तक गृह मंत्री के रूप में कार्य किया, जहाँ उन्होंने राष्ट्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नीतियों को तैयार करने और लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भारत रत्न के अलावा, आडवाणी को लोकतंत्र और शांति निर्माण में उनके योगदान के लिए भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण और विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों सहित कई अन्य पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं।
विरासत और प्रभाव
भारतीय राजनीति पर लालकृष्ण आडवाणी की विरासत और प्रभाव निर्विवाद है। उन्होंने भाजपा के वैचारिक ढांचे को आकार देने और इसे देश में एक प्रमुख राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राष्ट्रवाद, सुशासन और विकास के प्रति आडवाणी की प्रतिबद्धता नेताओं की पीढ़ियों को प्रेरित करती है।
-Daisy