रचनात्मकता के शिखर छू रहा हिंदी विश्वविद्यालय, छात्रों को मिल रहा खुला मंच।

Attention India
5 Min Read

कुछ सालों से महाराष्ट्र के वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में विचारधाराओं की टकराहट में छात्रों के अहित के कई मामले सामने आए। सबसे ज्यादा प्रकरण में रहा नागपुर के आई आई एम के निदेशक और कुलपति का अतिरिक्त पदभार ग्रहण किए भीमराव मैत्री और पूर्व कुलपति लेल्या कारुण्यकारा का मामला। शिक्षा मंत्रालय के द्वारा नियुक्त मैत्री की नियुक्ति को मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में अवैध करार देते हुए तत्काल निर्देश दिया कि विधि अनुसार कुलपति की नियुक्ति हो। इस बीच छात्रों और प्रशासन के बीच तनातनी में कई छात्रों का निलंबन और निष्कासन भी हुआ था जिसके चलते कई छात्रों का अकादमिक नुकसान भी हुआ।

नियमानुसार हिंदी विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर कृष्ण कुमार सिंह ने पदभार ग्रहण किया। उनके कुलपति बनते ही प्रशासनिक पदों पर बैठे लोगों को बदला गया। छात्रों का कहना है कि परिसर के अंदर छात्र गतिविधियों पर जो लगाम लगा हुआ था उससे अब जाकर थोड़ा आराम मिला है। छात्र कहते हैं कि जब से कुलपति के रूप में प्रोफेसर कृष्ण कुमार सिंह ने पदभार संभाला है तब से छात्र थोड़ा खुलकर सांसें ले पा रहे है।

हिंदी विश्वविद्यालय में कुछ छात्रों को गांधी पर कार्यक्रम करने से रोक लगाई थी जिसके चलते छात्रों ने बड़ा आंदोलन किया था। कई बार सूत्रों से ऐसी भी सूचनाएं आती रहीं हैं जिनमे छात्रों ने कहा है कि यहां परिसर में एक विशेष विचारधारा को पोषित किया जाता है। उन्हीं के लिए कार्यक्रम रखे जाते हैं और संगोष्ठियों के नाम पर राजनीतिक बातें की जाती हैं।

सूत्रों से पता चला है कि पूर्व में कुलसचिव का पद संभाले एक प्रोफेसर पर लाखों रुपए के गबन का आरोप भी लगा है। इस सूचना की अभी कोई पुष्टि नहीं हो सकी है मगर ऐसी सुगबुगाहट विश्वविद्यालय के छात्रों के बीच हैं। छात्रों ने पूर्व कुलसचिव पर यह भी आरोप लगाया है कि आए दिन वो छात्रों के अपराधीकरण करने में लगे रहते हैं।

अभी के माहौल की बात करें तो हिंदी विश्वविद्यालय में कार्यक्रमों और संगोष्ठियों का जमकर आयोजन हो रहा है। एक कार्यक्रम के दौरान यह भी पता चला कि करीब चार साल बाद मुंशी प्रेमचन्द का जन्मदिवस मनाया गया और उसके उपलक्ष्य में राष्ट्रीय संगोष्ठी भी रखी गई। यह बात अपने आप में चकित कर देने वाली है कि एक हिंदी विश्वविद्यालय में प्रेमचंद की जयंती को न मनाए जाने का आखिर क्या कारण रहा होगा?

प्रेमचंद जयंती के साथ विकसित भारत पर आधारित कार्यक्रम, फोटो ग्राफी में दो दिवसीय व्याख्यान, खेल व्याख्यान, भीष्म साहनी पर केंद्रित कार्यक्रम, अगस्त क्रांति पर आधारित कार्यक्रमों जैसी बड़ी श्रृंखला है जो महज कुछ महीनों के भीतर हिंदी विश्वविद्यालय में प्रो कृष्ण कुमार सिंह के कुलपति रहते संपन्न हुई है।

एक छात्र ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि यहां जब तक आर एस एस और उनके लोगों का वर्चस्व था तब तक परिसर को भगवाकरण करने की कोशिश की गई। अभी के कुलपति उदारवादी विचारों के हैं। वो सभी विचारों को समझने और उन्हें जगह देने वाले हैं। मगर पहले ऐसा नहीं था। पहले के लोग बजट का खर्च मूर्तियां लगवाने और टाइल्स बिछाने में खर्च कर रहे थे। हालांकि अभी छात्रावासों में मूर्तियां लगी भी नहीं हैं। उनका पैसा कहां गया किसी को नहीं पता।

दूसरे एक छात्र ने कहा कि इस समय वर्धा में ही नहीं हिंदी विश्वविद्यालय के कैंपस में भी हरियाली का माहौल है। कुलपति प्रो कृष्ण कुमार सिंह जी का व्यवहार इतना मिलनसार और प्रभावी है कि वो बच्चों की हर एक समस्या सुनते हैं और उनके रचनात्मक विकास का हर संभव प्रयास करते है।

आने वाले कुछ महीनों में वर्तमान कुलपति प्रो कृष्ण कुमार सिंह सेवानिवृत्त होंगे। अब देखना ये है कि यहां के छात्रों में कुलपति को लेकर जो आस जगी है, भविष्य में भी उन्हें वैसा ही कुलपति मिलता है कि नहीं।

Share This Article
Exit mobile version