आरक्षण तब तक ही उचित होता है। जब तक वह उचित व्यक्ति तक पहुंचता रहता है। जब वह जाति-जाति में धर्म-धर्म में विभेद पैदा कर आरक्षण की पैरवी करता है तो मानव वह उचित व्यक्ति की नहीं अपना रक्षण यानी हीत चाहता है वैसा आरक्षण समाज में वैमनस्यता पैदा कर भक्षण बन जाता है। जो दबे कुचले व्यक्ति हैं जिसे आरक्षण की जरूरत है। उसका सोच इतना शातिर कैसे हो सकता है कि वह आंदोलन बंदी तोड़फोड़ की सोच सके। उसका तो राजनीतिक दलों ने अपनी सत्ता लोभ के लिए उसके कंधे पर बंदूक रख लोकतंत्र का हत्या कर रहे है।
यदि कांग्रेस सहित विपक्षी उनका इतना हितैषी होता तो वह कम से काम वैसा काम नहीं किया होता। कांग्रेस के जमाने में तो नहीं कोई संस्थागत प्रक्रिया अपनाया जाता नहीं कोई योग्यता की प्राथमिकता दी जाती थी। जिसका प्रमाण नेहरू जी की बहन विजया लक्ष्मी पंडित को बिना आई एफ एस परीक्षा के ही राज्यपाल बना दिया गया था। उसी तरह मनमोहन जी मोंटेक सिंह को भी लेटरल व्यवस्था के तहत बिना कोई संस्था प्रक्रिया के नियुक्त किया गया था। तब किसी को आरक्षण एवं संविधान खत्म करना नहीं दिखा था।
लेकिन आज जब मोदी जी इस प्रक्रिया के अंदर एक संस्थागत व्यवस्था अंतर्गत से नियुक्त की घोषणा किये जिसमें एससी एसटी ओबीसी को भी शामिल किया गया। फिर भी मोदी आरक्षण संविधान विरोधी कैसे बन गया। विपक्ष लोकतंत्र को इतना मूर्ख मत बनावे। विपक्ष को यह बताना होगा कि देश योग्यता से चलेगा कि अंगूठा छाप सचिवों से। आरक्षण के रक्षण में देश को भक्षण मत बनावे। एक चपरासी की नियुक्ति में न्यूनतम योग्यता जरूरी रहता है। और देश चलाने के लिए नेता मंत्री सचिवों को आरक्षण की आड़ में योग्यता की न्यूनतम सीमा क्यों नहीं देखा जाना चाहिए। यदि ऐसा ही तुच्छ खेल विपक्ष खेलता रहा तो देश को बर्बादी के कगार पर पहुंचने में देर नहीं लगेगा। विपक्ष की ऐसी तुच्छ सोच में शायद किसी विदेशी षड्यंत्र का चाल लगता है। विपक्ष चाहता है कि भारत कमजोर बने गृह युद्ध छिड़ जाए यहां भी बहुसंख्यक अल्पसंख्यकों को बांग्लादेश जैसा मार भगावे। इस पर आम जनता को खुद कदम बढ़ाना होगा ताकि षड्यंत्र को रोका जाए।