आपके ही हैं हम- तेरे सनम 

Attention India
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योगी सरकार का आदेश क्या आया दुकानों पर नाम वाली बोर्ड लगाने का की सारे राजनीतिक दलों में बेचैनी छा गयी ,सभी नेताओं ने अपने को मुसलमान का हितैषी दिखाने की होड़ लग दिया समझ नहीं आता की वैसे नेताओं को देश में सिर्फ मुसलमान ही कमजोर एवं अल्पसंख्यक क्यों दिखते है। अन्य निम्न संख्यक सिख, ईसाई बौद्ध जैसे आदि की चिंता क्यों नहीं रहती है। मनमोहन सिंह जी बोले थे देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमान का है तब किसी को कांग्रेस सांप्रदायिक संविधान विरोधी नहीं दिखा था। मोदी जी जाति धर्म से हटकर सरकारी योजनाएं नल, जल, शौचालय, गैस उज्ज्वला मुफ्त राशन चला रहे हैं फिर भी भाजपा को सांप्रदायिक एवं संविधान विरोधी बता रहे है। अब न्यायालय ने भी नाम वाले बोर्ड पर रोक लगा दिया है लेकिन न्यायालय को भी सोचना होगा कि आखिर ऐसा आदेश क्यों देना पड़ा। सभी अपने धर्म में पवित्रता चाहते है। जब उस पवित्रता को धोखे में भंग किया जा रहा है। तब जाकर योगी जी को ऐसा निर्णय लेना पड़ा इस निर्णय से जितना विरोध मुस्लिम भाइयों को नहीं है उससे कहीं ज्यादा वोट बैंक के दलाल नेताओं को दर्द हो रहा है। जिसे इतना दर्द है उसे कौन रोक रखा है। कांवड़ यात्रा करें। मांसाहारी भोजन करें वहीं से प्रसाद लेकर चढ़ावे, परंतु जो अपने धर्म में पवित्रता रखना चाहता है उसे धोखे में डालना किसी को अधिकार नहीं है। मुस्लिम भाइयों ने भी नाम का बोर्ड लगाकर उसका समर्थन किया है। वैसे वोट के डकैत नेता जब मंच पर जाते है तब मुस्लिम भाई को धोखा देने के लिए अपने धर्म को बेचकर मुस्लिम टोपी चादर सर पर रखते हैं। परंतु धन्यवाद उन मुस्लिम भाइयों को जो राजनीतिक के लिए अपने धर्म का सौदा नहीं करते है और नहीं माथे पर तिलक एवं गले में तुलसी माला पहनकर हिंदू भाई को धोखा देते है। नाम वाली बोर्ड लगाना गलत है तो क्या अब शाकाहारी मांसाहारी वाला बोर्ड भी हटाना जरूरी हो जाएगा। क्योंकि बोर्ड रहने पर शाकाहारी उस दुकान पर नहीं जाएगा नेताओं को जब अपने नाम की बात आती हैं तो सरकारी योजनाओं सड़क, पुल, अस्पताल, मोहल्ला का नाम अपने नाम पर रख खुद प्रचार प्रसार करते है। जब सरकारी लाभों में जाति धर्म का उल्लेख करना अनिवार्य रहता है तब जाति गणना नौकरी में अगला पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक की बातें करता है। तब न्यायालय कोई नहीं जाता है। नहीं न्यायालय स्वतः संज्ञान लेते हैं। जबकि न्यायालय भी समझ रहा हैं कि इतना  दावा सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के लिए हो रहा है। किसी से भी किसी नेता को कोई हमदर्दी नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि कहीं कोई अपने धर्म की पहचान के साथ दुकान पर बोर्ड नहीं लगा रखा है। बड़े-बड़े शहरों में शाकाहारी को हरा, मांसाहारी का लाल निशान बनाया बोर्ड मिलेगा। हिंदू अपने देवी देवता के प्रतिमा तो मुस्लिम चांद तारा का प्रतीक या 786 की पहचान देकर बोर्ड लगा रखा है कहीं राजस्थानी ढाबा, कहीं बिहारी व्यंजन तो कहीं दक्षिणी भारतीय खाना का बोर्ड लगा रखा है। फिर एक योगी जी के आदेश वाली नाम बोर्ड पर इतना बवाल, कुछ शंका पैदा करता है। जिस पर न्यायालय महोदय का ध्यान देना जरूरी बनता है।

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