Mumbai, 10th February: शूद्र का शाब्दिक अर्थ है जो सभी की सुने। सभी की वही व्यक्ति सुन सकता है जिसमें त्याग, तपस्या, सेवा और समपर्ण का भाव होता है। जिस मानव में इतने महान गुण शामिल हों, भला वह शूद्र बुरा कैसे हो सकता है? सृष्टि की रचना के वक्त भगवान ब्रह्मा ने जिन चार कर्मों की रचना की थी। उन चार कर्मों में प्रमुख रूप से शूद्र कर्म का भी योगदान था। शूद्र कर्म बुरा है और बाकी तीन कर्म अच्छे हैं यह कैसे मुमकिन है? अगर हम शूद्र कर्म को जात-पात की भावना से देखें तो हम पाएंगे कि शूद्र कर्म दबे, कुचले और कमजोर कर्म बताया गया है। वैसे नेता खुद महाशूद्र यानी कि महानीच मानव है। वैसे महानीच नेता, ताड़ना और प्रताड़ना में जो बहुत बड़ा अंतर है उसे भी सम्यक रूप से समझ नहीं पा रहा है। रामचरित्र मानस के एक दोहा पर टीका-टिप्पणी करके शूद्र एवं नारी का अपमान बताता है। जबकि उस दोहे का असली अर्थ है ढोल यानी जो दूसरों के सहारे पहचान मिली, गंवार यानी जो अज्ञानी है, शूद्र यानी जो सेवा और समर्पण भाव रखता है, पशु जो हमेशा ही पराधीन रहता है और नारी यानी वह नारी घर की हो या घर यानी शरीर की जो दूसरों को पहचान देने में सक्षम हो, ऐसे असहाय परहितकारी, सेवा-समर्पण वाले कर्म को भगवान ने स्वतः ही ताड़ना यानी मोक्ष का अधिकारी बना दिया है। हमारा संविधान जिसका संरक्षक है, उसे किसी शूद्र नेता यानी नीच नेता की हमदर्दी की क्या जरूरत है? शूद्र तो अपने आप में ही महान है। शूद्र नेताओं ने ताड़ना यानी उद्धार या मोक्ष को प्रताड़ना यानी दण्ड देना बता दिया है। शूद्र को एक कर्म न मानकर उसे पिछड़ा, कमजोर, दलित जाति मान लिया है। शूद्र कर्म हर जगह विद्यमान है। हमारे शरीर में ज्ञान का भंडार यानी हमारे मस्तिष्क को ब्राह्मण माना जाता है। शक्ति स्वरूप हाथ क्षत्रीय है। जीवन संसाधन भंडार उदर यानी पेट वैश्य है। सेवा और समर्पण भाव से पूरे शरीर का भार वहन करने वाले पैरों को शूद्र की संज्ञा दी गई है। उसी प्रकार धर्म रक्षक, ब्रह्मज्ञानी श्रीराम भगवान को ब्राह्मण माना गया है। शक्ति का रूप लक्षमण जी को क्षत्रीय माना गया है। धन की देवी लक्ष्मी का ही रूप सीता माता को वैश्य माना गया है तथा सेवा-समपर्ण, त्याग रूपी भरत जी को शूद्र की संज्ञा दी गई है। संपूर्ण सृष्टि की रचना करने वाले और ब्रह्मज्ञानी भगवान ब्रह्मा को ब्राह्मण माना गया है। रक्षक एवं भक्षक यानी संहार कर्ता के रूप में माने जाने वाले भगवान भोलेनाथ को क्षत्रीय माना गया है। सृष्टि के पालनहार के रूप में भगवान विष्णु को वैश्य माना गया है। एवं सेवा, समर्पण, त्याग, महान शक्तिशाली, चारों युगों में सभी का कल्याण करने वाले और सुनने वाले भगवान हनुमान जी को शूद्र माना गया है। उसी सेवा, समर्पण, त्याग की मूर्ति शूद्र कर्म की मूर्ति निषाद राज, माता शबरी, हनुमान जी, भरत जी, वानर-भालू, जटायू, आदि को ताड़ना यानी मोक्ष का अधिकारी बना दिया है। शूद्र एक ऐसा कर्म है जिसके बल से विश्वामित्र जी क्षत्रीय से ब्राह्मण बन गए। एवं श्री कृष्ण जी का लालन पालन कर्म से क्षत्रीय के यदु वंश में हुआ इसलिए वे यदुवंशी कहलाने लगे। शूद्र कोई जाति नहीं है, यह एक कर्म है। इस सच्चाई का आइना किसी शूद्र नेता को कोई सच्चा शूद्र ही दिखा सकता है। शूद्र जैसे कर्म को कमजोर मत होने दें। जिससे कोई भी आप शूद्रों में आपसी फूट डालकर वोट हथियाने की हिम्मत न कर सके। जिस नेता की नैतिकता इतनी गिर चुकी है कि धर्म ग्रंथ को जलाए, अपना मातृभूमि, सेना, धर्म, जाति आदि को गलत बताए, ऐसे नीच नेता से सावधानी बरतना बेहद जरूरी है।
लेखक: श्यामानंद मिश्रा
श्याम सिंधप (मधुबनी)